इतिहासकार, लेखक और सैन जोस के विशेषज्ञ फ्रांसिस्को मुनोज़ के लिए यह सबसे ख़राब स्थिति होगी.
वह कहते हैं, "उसके बारे में पूरी तरह जानने का निर्विदाद अधिकार इंसानियत का है. कोलंबिया को एक योग्य संरक्षक बनने की ज़रूरत है."
इसका मतलब है कार्टाजेना में एक संग्रहालय बने जहां गैलियन के खजाने को पूरी तरह प्रदर्शित किया जाए.
मुनोज़ कहते हैं, "उस प्रदर्शनी को कौन नहीं देखना चाहेगा? सैन जोस गैलियन जो कहानी सुनाएगा, वह देखने वालों को अचंभित कर देगा."
2018 में पूर्व राष्ट्रपति सांटोस ने ट्विटर पर लिखा था, "सैन जोस गैलियन राष्ट्रीय समुद्र में डूबा था जिसकी खोज इतिहास की महानतम खोजों में से एक है. जलमग्न सांस्कृतिक विरासत कानून के साथ हम इसे हासिल कर सकते हैं."
अपने ट्वीट को उन्होंने हैशटैग # के साथ ख़त्म किया, जिसका अर्थ होता है "हमारी संस्कृति सर्वश्रेष्ठ विरासत."
विशेषज्ञों का कहना है कि इस परियोजना में हड़बड़ी नहीं की जा सकती. सामुद्रिक पुरातत्वविद् जुआन गुइलेर्मो मार्टिन कहते हैं, "जहाज 300 साल से डूबा हुआ है और यह संरक्षण के अधिकार की गारंटी देता है."
"यदि कोलंबिया में अभी ऐसी स्थिति नहीं है कि हम जोखिम उठाएं तो ऐसा करना समझदारी नहीं है. यह कोलंबिया की विरासत के लिए जिम्मेदारी का बुनियादी सिद्धांत है, बल्कि मानवता के भी."
जब तक सैन जोस को निकाला नहीं जाता, कार्टाजेना के लोगों और सैलानियों के लिए म्यूजियम बनाना दूर की कौड़ी है.
कोलंबिया के पास अभी तक उस बेशकीमती जहाज को अपनी सीमा में रखने के अधिकार की गारंटी नहीं है.
अभी तो कार्टाजेना और रोजेरियो द्वीपसमूह पर आने वाले सैलानी बस समुद्र को निहार सकते हैं जिसकी तलहटी में सैन जोस स्थिर पड़ा हुआ है और अपने खजाने की हिफाजत कर रहा है.
इन तीनों घरानों में एक चीज़ समान है, वो है इनके अधिकतर सदस्यों का हिंसक अंत.
जॉन एफ़ केनेडी, रॉबर्ट केनेडी, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो, बेनज़ीर और उनके भाई शाहनवाज़ भुट्टो और मुर्तज़ा भुट्टो सभी की कुदरती मौत नहीं हुई.
मुर्तज़ा भुट्टो की कहानी शुरू होती है 4 अप्रैल, 1979 से जब सारी दुनिया को धता बताते हुए पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह जनरल ज़िया उल हक़ ने वहाँ के पहले निर्वाचित नेता ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को फाँसी पर चढ़वा दिया.
भुट्टो की बेटी बेनज़ीर ने पाकिस्तान में ही रह कर ज़िया के ख़िलाफ़ संघर्ष, करने का फ़ैसला किया.
लेकिन उनके दोनों बेटों शहनवाज़ और मुर्तज़ा ने पाकिस्तान के बाहर जा कर अपने पिता को बचाने की मुहिम चलाई.
लेकिन ज़िया पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. भुट्टो को जब फाँसी दी गई तो मुर्तज़ा और शाहनवाज़ भुट्टो लंदन के एक फ़्लैट में रह रहे थे.
ख़बर मिलते ही वो बाहर आए और दुनिया भर के मीडिया के सामने बोले, "उन्होंने दो सालों तक उन्हें यातनाएं दीं. उनका राजनीतिक नाम बरबाद करने की कोशिश की और अब उन्होंने उन्हें मार डाला है. हमें किसी भी चीज़ पर शर्म करने की ज़रूरत नहीं है. उन्होंने आज एक शहीद को दफ़नाया है."
भुट्टो की मौत के बाद उसका बदला लेने के ले भुट्टो के दोनों बेटों ने हथियार उठा लिए और अल-ज़ुल्फ़िकार की स्थापना की.
पहले दोनों अफ़गानिस्तान और सीरिया में साथ साथ रहे लेकिन बाद में शाहनवाज़ फ़्रांस में अपनी पत्नी के साथ रहने लगे.
इस बीच दोनों भाई गुप्त रूप से भारत आए और उन्होंने इंदिरा गाँधी से मुलाकात की.
मशहूर पत्रकार श्याम भाटिया अपनी किताब 'गुडबाई शहज़ादी' में लिखते हैं, "इंदिरा गांधी ने विपक्ष में रहते हुए अपने दिल्ली निवास में दो बार मुर्तज़ा और शहनवाज़ भुट्टो से मुलाकात की थी. भारतीय सूत्रों का कहना है कि भुट्टो भाइयों ने आर्थिक मदद की माँग की थी और इंदिरा गाँधी की वजह से उन्हें ये मदद मिली भी थी."
वह कहते हैं, "उसके बारे में पूरी तरह जानने का निर्विदाद अधिकार इंसानियत का है. कोलंबिया को एक योग्य संरक्षक बनने की ज़रूरत है."
इसका मतलब है कार्टाजेना में एक संग्रहालय बने जहां गैलियन के खजाने को पूरी तरह प्रदर्शित किया जाए.
मुनोज़ कहते हैं, "उस प्रदर्शनी को कौन नहीं देखना चाहेगा? सैन जोस गैलियन जो कहानी सुनाएगा, वह देखने वालों को अचंभित कर देगा."
2018 में पूर्व राष्ट्रपति सांटोस ने ट्विटर पर लिखा था, "सैन जोस गैलियन राष्ट्रीय समुद्र में डूबा था जिसकी खोज इतिहास की महानतम खोजों में से एक है. जलमग्न सांस्कृतिक विरासत कानून के साथ हम इसे हासिल कर सकते हैं."
अपने ट्वीट को उन्होंने हैशटैग # के साथ ख़त्म किया, जिसका अर्थ होता है "हमारी संस्कृति सर्वश्रेष्ठ विरासत."
विशेषज्ञों का कहना है कि इस परियोजना में हड़बड़ी नहीं की जा सकती. सामुद्रिक पुरातत्वविद् जुआन गुइलेर्मो मार्टिन कहते हैं, "जहाज 300 साल से डूबा हुआ है और यह संरक्षण के अधिकार की गारंटी देता है."
"यदि कोलंबिया में अभी ऐसी स्थिति नहीं है कि हम जोखिम उठाएं तो ऐसा करना समझदारी नहीं है. यह कोलंबिया की विरासत के लिए जिम्मेदारी का बुनियादी सिद्धांत है, बल्कि मानवता के भी."
जब तक सैन जोस को निकाला नहीं जाता, कार्टाजेना के लोगों और सैलानियों के लिए म्यूजियम बनाना दूर की कौड़ी है.
कोलंबिया के पास अभी तक उस बेशकीमती जहाज को अपनी सीमा में रखने के अधिकार की गारंटी नहीं है.
अभी तो कार्टाजेना और रोजेरियो द्वीपसमूह पर आने वाले सैलानी बस समुद्र को निहार सकते हैं जिसकी तलहटी में सैन जोस स्थिर पड़ा हुआ है और अपने खजाने की हिफाजत कर रहा है.
दुनिया में जब वंशवाद की बात की जाती है तो सबसे पहले केनेडी वंश का नाम लिया जाता है.
उसके बाद भारत के नेहरू-गाँधी वंश और पाकिस्तान के भुट्टो खानदान का नाम आता है.इन तीनों घरानों में एक चीज़ समान है, वो है इनके अधिकतर सदस्यों का हिंसक अंत.
जॉन एफ़ केनेडी, रॉबर्ट केनेडी, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो, बेनज़ीर और उनके भाई शाहनवाज़ भुट्टो और मुर्तज़ा भुट्टो सभी की कुदरती मौत नहीं हुई.
मुर्तज़ा भुट्टो की कहानी शुरू होती है 4 अप्रैल, 1979 से जब सारी दुनिया को धता बताते हुए पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह जनरल ज़िया उल हक़ ने वहाँ के पहले निर्वाचित नेता ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को फाँसी पर चढ़वा दिया.
भुट्टो की बेटी बेनज़ीर ने पाकिस्तान में ही रह कर ज़िया के ख़िलाफ़ संघर्ष, करने का फ़ैसला किया.
लेकिन उनके दोनों बेटों शहनवाज़ और मुर्तज़ा ने पाकिस्तान के बाहर जा कर अपने पिता को बचाने की मुहिम चलाई.
लेकिन ज़िया पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. भुट्टो को जब फाँसी दी गई तो मुर्तज़ा और शाहनवाज़ भुट्टो लंदन के एक फ़्लैट में रह रहे थे.
ख़बर मिलते ही वो बाहर आए और दुनिया भर के मीडिया के सामने बोले, "उन्होंने दो सालों तक उन्हें यातनाएं दीं. उनका राजनीतिक नाम बरबाद करने की कोशिश की और अब उन्होंने उन्हें मार डाला है. हमें किसी भी चीज़ पर शर्म करने की ज़रूरत नहीं है. उन्होंने आज एक शहीद को दफ़नाया है."
भुट्टो की मौत के बाद उसका बदला लेने के ले भुट्टो के दोनों बेटों ने हथियार उठा लिए और अल-ज़ुल्फ़िकार की स्थापना की.
पहले दोनों अफ़गानिस्तान और सीरिया में साथ साथ रहे लेकिन बाद में शाहनवाज़ फ़्रांस में अपनी पत्नी के साथ रहने लगे.
इस बीच दोनों भाई गुप्त रूप से भारत आए और उन्होंने इंदिरा गाँधी से मुलाकात की.
मशहूर पत्रकार श्याम भाटिया अपनी किताब 'गुडबाई शहज़ादी' में लिखते हैं, "इंदिरा गांधी ने विपक्ष में रहते हुए अपने दिल्ली निवास में दो बार मुर्तज़ा और शहनवाज़ भुट्टो से मुलाकात की थी. भारतीय सूत्रों का कहना है कि भुट्टो भाइयों ने आर्थिक मदद की माँग की थी और इंदिरा गाँधी की वजह से उन्हें ये मदद मिली भी थी."