Tuesday, April 30, 2019

आईएस नेता 'बग़दादी का' नया वीडियो सामने आया

इस्लामिक स्टेट समूह ने एक वीडियो जारी किया है जिसमें दावा किया गया है कि वीडियो में नज़र आ रहा व्यक्ति अबु बक़र अल-बग़दादी है. यदि इस वीडियो की सत्यता की पुष्टि हो जाती है तो बीते पांच साल में बग़दादी का ये पहला वीडियो होगा.
बग़दादी को आख़िरी बार जुलाई 2014 में देखा गया था. नए वीडियो में बग़दादी ने माना है कि इराक़ में इस्लामिक स्टेट का आख़िरी गढ़ बाग़ुज़ उनके हाथ से निकल गया है.
ये वीडियो इस्लामिक स्टेट के मीडिया नेटवर्क अल-फ़ुरक़ान पर पोस्ट किया गया है. वीडियो अप्रैल में पोस्ट किया गया है, लेकिन ये नहीं मालूम कि इस वीडियो को रिकॉर्ड कब किया गया.
इस वीडियो में बग़दादी ने बाग़ुज़ के साथ-साथ श्रीलंका में ईस्टर संडे के मौके पर हुए हमलों के बारे में भी बात की है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, बग़दादी का कहना है कि इराक़ी शहर बाग़ुज़ में हुए इस्लामिक स्टेट के पतन का बदला लेने के लिए श्रीलंका में ईस्टर संडे के मौके पर हमले किए गए.
बीबीसी के रक्षा मामलों के संवाददाता फ्रैंक गार्डनर के मुताबिक, इस वीडियो का उद्देश्य ये बताना है कि हार के बाद इस्लामिक स्टेट ख़त्म नहीं हुआ है और अपने सिर पर ढाई करोड़ अमरीकी डॉलर के इनाम के साथ उसके नेता अबु बक़र अल-बग़दादी अभी भी ज़िंदा है और पकड़ से बाहर है.
मूल रूप से इराक़ के रहने वाले बग़दादी का असली नाम इब्राहिम अव्वाद इब्राहिम अल-बदरी है. पिछले साल अगस्त में उनकी आवाज़ एक ऑडियो के ज़रिए सामने आई थी.
बीबीसी के मध्यपूर्व संवाददाता मार्टिन पेशेंस का कहना है कि तब ऐसा लगा था कि बग़दादी ने इस्लामिक स्टेट को हुए नुकसान से ध्यान हटाने की कोशिश की है.
लेकिन 18 मिनट के ताज़ा वीडियो में बग़दादी का कहना है, ''बाग़ुज़ की लड़ाई ख़त्म हो चुकी है. इस लड़ाई के बाद बहुत कुछ होना बाक़ी है.''
कुछ वर्ष पहले इस्लामिक स्टेट उस वक्त अपने चरम पर था जब इराक़-सीरिया सीमा के एक बड़े हिस्सा पर उनका नियंत्रण था.
लेकिन साल 2016 में और उसके अगले साल, इराक़ का मोसुल उसके हाथ से निकल गया. साल 2017 के अक्तूबर में सीरिया के रक़्क़ा से भी उन्हें खदेड़ दिया गया था.
कुर्दों की अगुवाई वाली सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज़ का दावा है कि इराक़ का बाग़ुज़ शहर भी अब उनके नियंत्रण में है.
बताया जाता है कि बग़दादी का जन्म साल 1971 में इराक़ के बगदाद शहर के उत्तर में स्थित समारा में हुआ.
कुछ पुरानी रिपोर्टों के मुताबिक़, साल 2003 में जब अमरीकी सेनाएं इराक़ में दाख़िल हुईं, तब तक बग़दादी शहर की एक मस्जिद में मौलवी हुआ करते थे.
साल 2014 की रिपोर्टों के अनुसार, इस्लामी चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट इन इराक़ एंड अल-शाम (आईएसआईएस) ने इराक़ और सीरिया में अपने कब्ज़े वाले इलाक़े में 'ख़िलाफ़त' यानी इस्लामी राज्य की घोषणा की थी.
संगठन ने अपने मुखिया अबु बक़र अल-बग़दादी को 'ख़लीफ़ा' और दुनिया में मुस्लिमों का नेता घोषित किया था.

Tuesday, April 9, 2019

मोदी की चुनावी रैली से क्यों उठकर चले गए मणिपुर के लोग?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इंफ़ाल (मणिपुर) रैली का एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफ़ी शेयर किया जा रहा है जिसमें दिखाई देता है कि पुलिस के कुछ जवान लोगों को एक दरवाज़े से बाहर निकलने से रोक रहे हैं.
इस वीडियो के साथ लोग लिख रहे हैं कि '2014 में मोदी की रैली में लोग आते थे, 2019 में उन्हें पुलिस के दम पर रोकना पड़ रहा है'.
'मणिपुर टॉक्स' नाम की एक स्थानीय वेबसाइट ने भी यह वीडियो शेयर किया है और लिखा है, "भारी अफ़रा-तफ़री के बीच लोगों को मोदी की रैली में रोके रखने के लिए पुलिस को मेहनत करनी पड़ी. पुलिस ने बैरिकेड लगाकर लोगों को मैदान में रोका. ये शर्म की बात है."
ट्विटर पर इस वेबसाइट के द्वारा पोस्ट किया गया यह वीडियो क़रीब तीन लाख बार देखा जा चुका है और सैकड़ों लोग इसे री-ट्वीट कर चुके हैं.
इनमें कई यूज़र ऐसे हैं जिन्होंने लिखा है कि मोदी के भाषण से निराश होकर मणिपुर के लोग रैली के बीच ही वापस लौटने लगे थे.
सोशल मीडिया पर एक-दो वीडियो ऐसे भी हैं जिनमें दिखाई देता है कि पुलिस ने मैदान का दरवाज़ा बंद कर रखा है और महिलाएं लोहे के दरवाज़े के ऊपर चढ़कर मैदान से बाहर आने की कोशिश कर रही हैं.
रविवार, 7 अप्रैल 2019 को मणिपुर की राजधानी इंफ़ाल में क्या हुआ था और क्या रैली मैदान से निकल रहे लोग वाक़ई मोदी के भाषण से निराश हो गए थे? इसकी हमने जाँच की.
मणिपुर के इंफ़ाल ईस्ट ज़िले के कंगला पैलेस से महज़ एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित हप्ता कंगजेईबुंग मैदान में नरेंद्र मोदी की यह रैली आयोजित हुई थी.
भारतीय जनता पार्टी ने पीएम मोदी का 6 अप्रैल को जो शिड्यूल जारी किया था, उसके अनुसार उन्हें शाम 4 बजकर 10 मिनट पर मणिपुर की इस रैली में पहुँचना था.
लेकिन मणिपुर बीजेपी ने इस रैली का जो पोस्टर जारी किया था, उसमें रैली का वक़्त 2:30 बजे दिया गया था.
रविवार को मोदी की इस रैली को कवर करने पहुँचे कुछ स्थानीय अख़बारों के रिपोर्ट्स ने बीबीसी को बताया कि सुबह 10 बजे से ही लोग रैली मैदान में पहुँचना शुरू हो गए थे.
प्रधानमंत्री के आगमन को देखते हुए रविवार को मणिपुर में सक्रिय भूमिगत चरमपंथी संगठन कोरकोम ने भी सूबे में बंद का आह्वान किया था.
भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के आगमन के विरोध में यह चरमपंथी संगठन पहले भी इस तरह का बंद बुलाता रहा है.
मणिपुर प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता बिजय चंद्र ने बीबीसी के सहयोगी पत्रकार दिलीप कुमार शर्मा को बताया कि पीएम की रैली को लेकर उन्हें काफ़ी चिंता थी.
बिजय चंद्र ने कहा, "सुरक्षा की चिंता के अलावा हमें यह भी फ़िक्र हो रही थी कि बंद के कारण रैली में काफ़ी कम लोग आ पाएंगे. इसीलिए हमने लोगों को ढाई बजे आने का वक़्त दिया था. लेकिन जो दूर-दराज़ के गाँवों से रैली में आये थे वो सुबह 11 बजे ही यहाँ पहुँच गए थे."
कुछ स्थानीय पत्रकारों ने बताया कि रैली में मंच संचालक ऐसे निर्देश दे रहे थे कि 'देश के प्रधानमंत्री किसी भी समय आप लोगों के बीच में होंगे. उनके स्वागत में सब खड़े होंगे और उनका अभिनंदन करेंगे'.
लेकिन इस बीच लोगों में दिन ढलने की चिंता बढ़ रही थी. मणिपुर में शाम 5 बजे के बाद सूरज छिपने लगता है.
ऑनलाइन मीडिया में कुछ ऐसी रिपोर्ट्स छपी हैं जिनमें कहा गया है कि कार्यक्रम में जो देरी हुई उसे लेकर लोगों में नाराज़गी थी. इसे देखते हुए मणिपुर सरकार में मंत्री थोंगम बिस्वजीत ने रैली मैदान में म्यूज़िक बजाने की भी पेशकश की थी.
यू-ट्यूब पर मौजूद एक वीडियो में थोंगम बिस्वजीत को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि 'पीएम मोदी के पास मणिपुर और पूर्वोत्तर भारत के लिए क्या संदेश है, उसे सुनने के लिए थोड़ा तो इंतज़ार करें.'
लेकिन पीएम मोदी अपने तय शिड्यूल से क़रीब डेढ़ घंटा देरी से रैली स्थल पर पहुँचे और इस बीच काफ़ी लोगों ने सीटें छोड़कर मैदान से बाहर जाना शुरू कर दिया था.